Passional Christi vnnd Antichristi , an annotated digital edition

Introduction by Ulrich Bubenheimer (German)

Das Passional Christi und Antichristi und die Antithesis figurata vitae Christi et Antichristi1

Inhalt – Quellen - Rezeption

Ulrich Bubenheimer

  1. Aufbau und Inhalt

Im Jahr 1521 wurde in Wittenberg in einer Bild-Text-Kombination eine Gegenüberstellung von Christus und Antichristus, d. h. Christi und des Papstes, produziert, die sowohl in einer lateinischen als auch in einer deutschen Ausgabe ‑ Antithesis figurata vitae Christi et Antichristi und Passional Christi und Antichristi – anonym publiziert wurde. Alle an der Produktion Beteiligten – Erfinder des Bildprogramms, Künstler, Autoren der Texte und Drucker – gaben ihre Namen nicht preis. Die polemische Satire besteht in der Wittenberger Fassung aus 13 Antithesen (hier mit römischen Zahlen durchgezählt: I bis XIII), die in je zwei Holzschnitten bildlich dargestellt wurden. Unter jedem der insgesamt 26 Holzschnitte (hier mit arabischen Zahlen durchgezählt: 1 bis 26) wurde ein mehrzeiliger kommentierender Text abgedruckt.

Im Folgenden wird zunächst ein Überblick über den Aufbau der Bildfolge und die auf den Holzschnitten dargestellten Themen vorangestell Tabelle 1). Zu den Themen der einzelnen Bilder führe ich die in den Drucken zitierten Quellen - Bibel und kanonisches Recht – auf. Da zu den einzelnen Holzschnitten oft mehrere Bibelstellen zitiert wurden, habe ich jeweils die Bibelstelle, aus der heraus die jeweilige Christus-Szene – in zwei Fällen auch die Antichristus-Szene ‑ entwickelt wurde, durch Fettdruck hervorgehoben.

Tabelle 1: Bildthemen, Quellenzitate und antithetische Symbolik im Passional

+————-+———-+————-+————-+————-+ | An | **Bild | Themen | **Zitate | An | | ti­the-se | | der | | tithetische | | | | Bilder** | (Bibel, | Symbolik | | | | | Kanonisches | | | | | | Recht)** | | +=============+==========+=============+=============+=============+ | I | 01 | Christus | Joh 6, | Zu | | | | flieht vor | 12 | rückweisung | | | 02 | dem Angebot | | einer Krone | | | | einer | Joh 18, 16 | durch | | | | Königskrone | | Christus / | | | | | Luk 22, | Gekrön­ter | | | | Papst mit | 25-26 | Papst als | | | | Krone | | welt­licher | | | | (Tiara) | 2 Petr 2, | Herrscher | | | | begegnet | 1. 10 | | | | | Fürsten mit | | | | | | Geschützen | | | | | | und | | | | | | La | | | | | | ndsknechten | | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | II | 03 | Krönung | Joh 19, | Krönung | | | | Christi mit | 2 | Christi mit | | | 04 | Dornenkrone | | Dornen / | | | | | dist. 116 | Krönung des | | | | Krönung des | c. | Papstes mit | | | | Papstes mit | C | Schmuck | | | | Tiara | onstantinus | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | III | 05 | Christus | Joh 13, | Christus | | | | wäscht und | 4-17 | küsst die | | | 06 | küsst die | | Füsse | | | | Füße der | Apok 13, 15 | anderer / | | | | Jünger | | Papst lässt | | | | | De priv. | sich die | | | | Papst lässt | cler., c. | Füsse | | | | sich die | Cum olim | küssen | | | | Füsse | ## | | | | | küssen | | | | | | | De sent. | | | | | | excom., c. | | | | | | Si summus | | | | | | pontifex | | | | | | ## | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | IV | 07 | Christus | Mt 17, | Christus | | | | und Petrus | 24-27 | zahlt Zoll | | | 08 | zahlen Zoll | | / Papst | | | | | Röm 13, 4-7 | fordert | | | | Papst | | Ste | | | | verhängt | Sextus, De | uerfreiheit | | | | Bann über | immunita­te | für Klerus | | | | O | eccl., c. 1 | | | | | brigkeiten, | ## | | | | | die den | | | | | | Klerus | | | | | | besteuern | | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | V | 09 | Christus | Phil 2, | Demut | | | | bei Lahmen, | 6-8 | Christi / | | | 10 | Aussätzigen | | Hochmut des | | | | und Blinden | dist. 26 c. | Papstes | | | | | Quando | | | | | Papst | ##; | | | | | ergötzt | | | | | | sich an | Glossa | | | | | Ri | ordinaria | | | | | tterturnier | ## | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | VI | 11 | Christus | Joh 4, 6 | Jesus trägt | | | | trägt sein | | sein Kreuz | | | 12 | Kreuz | Mt 16, 24 | / Papst | | | | | | lässt sich | | | | Papst wird | [ | tragen | | | | in Sänfte | Joh]2 | | | | | getragen | 19, 17 | | | | | | | | | | | | \ | | | | | | [...]3 | | | | | | c. Si quis | | | | | | suadente | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | VII | 13 | Christus | Luk 4, | Christus | | | | predigt dem | 42-44 | predigt / | | | 14 | Volk | | der Papst | | | | | De officio | gibt ein | | | | Papst beim | ordina., c. | Festmahl | | | | Festmahl | Inter | (statt zu | | | | | cetera ## | predigen) | +————-+———-+————-+————-+————-+ | VIII | 15 | Geburt | Luk 9, 58 | Christus in | | | | Christi im | | Armut / | | | 16 | Stall | 2 Kor 8, 9 | Papst führt | | | | | | Krieg für | | | | Papst mit | C. 15 q. 6 | Reichtum | | | | Tiara und | c. | | | | | Ri | A | | | | | tterrüstung | uctoritatem | | | | | führt Krieg | ## | | | | | | | | | | | | C. 23 q. 5 | | | | | | c. Omnium# | | | | | | | | | | | | C. | | | | | | […]4 | | | | | | q. 8 c. | | | | | | Omni ## | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | IX | 17 | > Einzug in | Mt 21, | Reiten auf | | | | > | 1-11 | Esel in | | | 18 | Jerusalem: | | Armut / | | | | > Christus | Joh 12, | Reiten auf | | | | > reitet | 14-15. 47 | Pferd in | | | | > auf Esel, | | Reichtum. | | | | > begleitet | C. 12 q. 1 | | | | | > vom | c. duo ## | Ziel: | | | | > einfachen | | Jerusalem / | | | | > Volk | dist. 96 c. | Hölle | | | | > | C | | | | | > Auszug in | onstantinus | | | | | > die | ## | | | | | > Hölle: | | | | | | > Papst | Extravag. | | | | | > reitet | Joh., c. | | | | | > auf | Super | | | | | > Pferd, | gentes ## | | | | | > begleitet | | | | | | > von | | | | | | > La | | | | | | ndsknechten | | | | | | > und hohem | | | | | | > Klerus | | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | X | 19 | > | Mt 10, | Armu | | | | Aussendung | 9-10 | tsforderung | | | 20 | > der | | Christi / | | | | > Jünger: | Act 3, 6 | Papst | | | | > Christus | | verleiht | | | | > fordert | dist. 80 c. | Reichtum | | | | > sie zur | Episcopi | | | | | > Armut auf | ## | | | | | > | | | | | | > Papst | dist. 70 c. | | | | | > zeigt | Sanctorum | | | | | > einem | | | | | | > Bischof | | | | | | > ein | | | | | | > Schloss | | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | XI | 21 | > Jünger | Lk 17, | (Texte: | | | | > waschen | 20-21 | Reich | | | 22 | > Hände vor | | Gottes | | | | > dem Essen | Mt 15, | innerlich / | | | | > die Hände | 1-3 | Reich des | | | | > nicht | | A | | | | > | (Jes | ntichristen | | | | > Papst | 21?)5 | äußerlich) | | | | > wird von | | | | | | > Klerus | 1 Tim 4,1-3 | | | | | > und Volk | | | | | | > angebetet | | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | XII | 23 | > Tempela | Joh 2, | Austreibung | | | | ustreibung: | 14-16 | aus dem | | | 24 | > Christus | | Tempel / | | | | > treibt | Mt 10, 8 | Handel im | | | | > Händler | | Tempel | | | | > aus dem | Act 8, 20 | | | | | > Tempel | | | | | | > | 2 Thess | | | | | > Papst | 2, 4 | | | | | > verkauft | | | | | | > im Tempel | Dan 11, | | | | | > | 36-37 | | | | | gesiegelte | | | | | | > Briefe | dist. 19 c. | | | | | | Sic omnis | | | | | | # | | | | | | | | | | | | C. 17. q. 4 | | | | | | c. Nemini | | | | | | # | | +————-+———-+————-+————-+————-+ | XIII | 25 | > | Act 1, | Auffahrt in | | | | Himmelfahrt | 9-11 | den Himmel | | | 26 | > Christi | | / Sturz in | | | | > | Luk 1 ,33 | die Hölle | | | | > | | | | | | Höllensturz | Joh 12, 26 | | | | | > des | | | | | | > Papstes | Apok | | | | | | 19, 11. | | | | | | 15. 20 | | | | | | | | | | | | 2 Thess 2, | | | | | | 8 | | +————-+———-+————-+————-+————-+

Im Blick auf das Verhältnis der Bildgestaltung zu den in den Texten zitierten Quellen, ergibt sich folgendes Bild: Nur eines der Christus-Motive, Geburt Christi im Stall (VIII 15), ist nicht nach einer der zitierten Bibelstellen gestaltet (VIII 15). Die Motive für die Antichristus- bzw. Papst-Szenen sind so gewählt, dass sie sich als Antitypus zu den dargestellten Christusszenen eignen. In vier Fällen werden auch zu den Antichristbildern Bibelstellen zitiert (I 2; III 6; XII 24; XIII 26). Es handelt sich um Zitate, mit denen entweder die Warnung vor Pseudopropheten auf den Papst bezogen wird (1 Petr 2, 1. 10 in I 2) oder Gestalten der biblischen Apokalyptik mit dem Papst identifiziert werden. Dabei haben die der Bibel entnommenen apokalyptischen Motive die Gestaltung der letzten beiden Papstbilder (XI 24; XIII 26) mitgeprägt. In den Texten zu den Papstbildern stehen allerdings nicht Bibelzitate, sondern Zitate aus den Quellen des kanonischen Rechts, aus dem Decretum Gratiani und den päpstlichen Dekretalen, im Vordergrund. Die Gegenüberstellung von Texten der Bibel und des kanonischen Rechtes stellen ebenfalls eine Antithese dar: Bibel contra kanonisches Recht. Ob die zitierten Rechtsquellen die Bildgestaltung im Einzelnen beeinflusst haben, bleibt zu untersuchen. ##[to be continued]##

  1. Lateinische Antithesis und deutsches Passional

Martin Luther (1483-1546) sprach am 7. März 1521 in einem Brief an seinen Freund Georg Spalatin (1484-1545), den Sekretär Kurfürst Friedrichs des Weisen (1463-1525), erstmals von einer „Antithese in Bildern”: Iam paratur Antithesis figurata Christi (et) pap(a)e, bonus pro laicis liber.6 („Im Augenblick wird eine Antithese Christi und des Papstes in Bildern vorbereitet, ein gutes Buch für die Laien.”) Die von Luther hier gewählte Bezeichnung für das in Vorbereitung befindliche Werk – Antithesis figurata Christi et papae – steht dem Titel des lateinischen Druckes ‑ Antithesis figurata vitae Christi et Antichristi ‑ so nahe, dass sich die Vermutung nahelegt, die Version mit lateinischen Texten könnte die ursprüngliche gewesen sein, der erst in einem zweiten Schritt eine Übersetzung der Texte für eine deutschsprachige Ausgabe gefolgt sein könnte. Um dies zu klären, wurde ein vollständiger Vergleich der lateinischen Textfassung (Antithesis figurata) mit der deutschen (Passional) durchgeführt. Dem Vergleich wurden folgende Wittenberger Drucke zugrunde gelegt:

ANTITHESIS FIGVRATA VITAE | CHRISTI ET ANTHICHRISTI. | AD LECTOREM | Eusebius. || Qua[m] male co[n]ueniant cum Christi pectore Iesu: | […]. [Wittenberg: Johann Grunenberg, 1521]. 7

Passional Christi vnd | Antichristi. [Wittenberg: Johann Grunenberg, 1521].8

Der Vergleich ergab, dass der deutsche Text eine Übersetzung des lateinischen ist. Vereinzelt sind im deutschen Text noch lateinische Formulierungen stehen geblieben, die Laien ohne Lateinkenntnisse nicht verständlich sein konnten. Dies soll hier an dem auffallendsten Beispiel gezeigt werden:

Zur zehnten Antithese (Holzschnitt 19: Christus fordert die Jünger zur Armut auf, nach Mt 10, 10-11) heißt es in der Antithesis figurata:

S. Petrus dixit: Aurum et argumentum non habeo. Actuum. iij. Vbi est ergo patrimonium Petri?9

Der Wittenberger Druck des Passional bietet folgende Version:

Sanct Peter sagt/ Ich habe wyder golt nach silber act. 3.10 Vbi ist dan Patrimonium Petri?11

Die Mischung aus Deutsch und Latein im zweiten Satz ist ein deutlicher Hinweis, dass dem Übersetzer der Text der Antithesis figurata vorlag. Während die zitierte Version der Übersetzung in allen Wittenberger und Erfurter Nachdrucken beibehalten wurde, haben erst die Straßburger Drucke, die insgesamt eine veränderte und erweiterte Fassung der Flugschrift bieten, jenes sprachliche Defizit behoben:

Sant Peter sagt. Ich hab weder goldt noch silber. Act.3. Wa ist dann Patrimonium vnd erbgu(o)t12 Petri.13

Die Klärung der Priorität der lateinischen Version der Flugschrift zeigt, dass der Begriff Passional in der ersten Fassung noch gar nicht verwendet wurde, sondern die Bilderfolge als „Antithesen in Bildern aus dem Leben Christi und des Antichristen” bezeichnet wurde. Tatsächlich sind die ausgewählten Szenen keineswegs nur den biblischen Überlieferungen von der Passion Christi entnommen, sondern bieten eine Folge von Szenen aus dem Leben Jesu bzw. Christi, zu denen entsprechend der ikonographischen Tradition14 sich ein Teil natürlich auch auf die Passion Christi bezieht. Der weitere, nicht nur auf die Passion Christi beschränkte Horizont der Themenauswahl erklärt sich aus der Zielsetzung der Bildfolge, in der Verhaltensweisen Christi den Verhaltensweisen des Antichristen gegenübergestellt werden sollten. Dabei stand die Identifikation des Antichristen mit dem Papst bereits schon vorweg fest, weshalb Luther in seinem Brief an Spalatin vom 7. März 1521 von der in Vorbereitung befindlichen „Antithese Christi und des Papstes in Bildern” sprechen konnte15.

  1. Rezeptionsgeschichte

Die im Passional dargestellten Szenen knüpfen an bereits vorhandene Überlieferungen an und setzten einen neuen Überlieferungsprozess in Gang. In diesen Traditionsstrom sind Bilder und Texte der lateinischen und deutschen Versionen einzuordnen, wobei auch Fragen des Entstehungsprozesses dieser Flugschriften zu klären sind. Dementsprechend wird die rezeptionsgeschichtliche Frage hier in zwei Richtungen verfolgt: Zum einen: Welche Traditionen haben die Wittenberger Produzenten ‑ die Erfinder und Gestalter des Bildprogramms sowie die Autoren der Texte ‑ aufgenommen? Und zum anderen: Wie wurde das Wittenberger Produkt im Spiegel der Nachdrucke und der von den Lesern in den Drucken hinterlassenen Benutzerspuren aufgenommen und fortgeschrieben?

##[to be continued]##

  1. Das Exemplar des Passional in der Pitts Theology Library

Das Exemplar des Passional in der Pitts Theology Library, gedruckt in Erfurt von Matthäus Maler16, ist von den Exemplaren, die ich bislang eingesehen habe, dasjenige, das die meisten handschriftlichen Notizen enthält. Der Umgang des unbekannten Lesers mit dem Druck spiegelt sich zunächst nonverbal in rudimentären Ansätzen zur Kolorierung eines Teils der Holzschnitte wieder. Während der Schreiber für seine Notizen eine heute graue Tintenfarbe17 gebrauchte, setzte er für die Kolorierung eine heute braune Tintenfarbe ein, die er auch schon auf dem Titelblatt für eine Verzierung innerhalb der Titeleinfassung eingesetzt hatte18. Es stellt sich die Frage, ob die Kolorierungselemente in den Holzschnitten über das Bedürfnis der Verzierung hinausgehen. ### [to be continued] ###

Die verbalen Bemerkungen des Lesers des Exemplars sind in der folgenden Übersicht zusammengestellt19.

Tabelle 2: Übersicht über die handschriftlichen Notizen im Exemplar der Pitts Theology Library.

+—————-+—————-+—————-+—————-+ | Nr. of image | * | **Hochdeutsche | **English | | / fol. | *Transkription | Übersetzung** | tran | | | der Notizen** | | slation**20 | +================+================+================+================+ | II 4 | [1] setzet | Setzt dem | Place the | | | dem Bapst die | Papst die | crown on the | | A3r | kron auff vnd | Krone auf und | Pope’s head, | | | schneidet ihm | schneidet ihm | then cut off | | | die Hoden aus. | die Hoden ab. | his testicles. | | | | | | | | [2] Bischoff | Bischof und | Bishops and | | | vnd munche | Mönche, guckt | monks, look up | | | kuckt ihm in | ihm in den | into his | | | hintern | Hintern | backside. | | | hinnauf | hinauf! | | +—————-+—————-+—————-+—————-+ | V 9 | [3] 6 opera | 6 Werke | 6 works of | | | Christi\ | Christi:\ | Christ:\ | | B1v | die Blinden | Die Blinden | The blind | | | sehen\ | sehen,\ | see,\ | | | die lamen | die Lahmen | the lame | | | gehn/\ | gehen,\ | walk,\ | | | die stumen | die Stummen | the mute | | | reden\ | reden,\ | speak,\ | | | die Tauben | die Tauben | the deaf | | | hören\ | hören,\ | hear,\ | | | die | die | the lepers | | | aussetzigen | Aussätzigen | [are] | | | rein\ | [sind] | clean,\ | | | die Totten | rein,\ | the dead rise\ | | | stehn auff\ | die Toten | and the Gospel | | | Vnd den Armen | stehen auf\ | is preached to | | | wird das | und den Armen | the poor. [Mt | | | Euangelium | wird das | 11, 5] | | | gepredigt. | Evangelium | | | | | gepredigt.\ | | | | | [Mt 11, 5] | | +—————-+—————-+—————-+—————-+ | V 10 | [4] Diese | Diese stechen | These are | | | stechen umbs | um das | fighting for | | B2r | Bapsthum.\ | Papsttum.\ | the Papacy.\ | | | Babstum wirt | Papsttum wird | The Papacy | | | vergan. | vergehen. | shall pass. | | | | | | | | [5] Stecht | Stecht, liebe | Fight on, good | | | lieben Hern | Herrn, | Sirs, fight, | | | stecht/\ | stecht,\ | and break the | | | vnd das | und das | Papacy. | | | Bapsthum zur | Papstthum | | | | brecht. | zerbrecht! | This is true | | | | | for fools: | | | [6] Das ist | Das ist wahr | Ruling sternly | | | waer bey den | bei den | over the | | | Narren.\ | Narren:\ | German fools.\ | | | Gestreng vber | Streng über | [Quoted from | | | die Deutzschen | die deutschen | the printed | | | Narren | Narren | text.] | | | Regieren | regieren.\ | | | | | [Zitat aus | | | | | dem gedruckten | | | | | Text.] | | +—————-+—————-+—————-+—————-+ | XI 22 | [7] Der | Der Papst | The pope lets | | | Bapst lest | lässt sich | himself be | | C4r | sich Beten an/ | anbeten in | worshipped in | | | in seinem | seinem | his idolatrous | | | abgöttischn | abgöttischen | junk shop, | | | Cram/ da er | Kram, in dem | where he | | | ist selber die | er selbst die | himself is | | | war. | Ware ist. | merchandise. | +—————-+—————-+—————-+—————-+ | XII 24 | [8] Zehle | Zähle auf,\ | Pay up,\ | | | auff/\ | in diesem | in this deal\ | | D1r | in diesem | Kauf\ | the price is | | | kauff/\ | ist Geld die | money,\ | | | ist gelt die | Lösung,\ | the Pope’s | | | losung/\ | des Papsts | recompense. | | | des Babst | Besoldung. | | | | soldung. | | | +—————-+—————-+—————-+—————-+ | XIII 26 | [9] der | Der Papst | The Pope | | | Bapst lernt | lernt, in | learns to fly | | D2r | fliegen in | Gottes Namen | to the devil | | | gotz nam zum | zum Teufel | by God’s | | | teufel zu/ | hinzufliegen. | command. | +—————-+—————-+—————-+—————-+

Die neun Notizen im Druck des Passional enthalten eine Ergänzung einer Bibelstelle zu einer Christus-Szene (Nr. 3), eine Heraushebung einer Textstelle zu einem Papstbild durch deren Wiederholung am Rand (Nr. 6), und sieben kommentierende Notizen zu insgesamt fünf ausgewählten Papstszenen.

Holzschnitt V 9 zeigt Christus im Umgang mit Lahmen, Krüppeln, Blinden und Aussätzigen, was im Text nach Phil 2, 6-8 als Zeichen seiner Demut herausgestellt wird. Während das Bild keine Krankenheilung zeigt, zitiert der Glossator am Rand Mt 11, 5 mit der lateinischen Überschrift 6 Opera Christi (“6 works of Christ”): “The blind see, the lame walk, the mute speak, the deaf hear, the lepers [are] clean, the dead rise and the Gospel is preached to the poor.” Das Bild veranlasste den Leser zu einer biblischen Assoziation, die über das gedruckte Bild-Text-Ensemble hinausging. Die Autoren des Passional konnten Christi Wunderheilungen unerwähnt lassen, da sie in der vorliegenden Antithese (Nr. V) die Demut Christi mit dem Hochmut des Papstes konfrontieren wollten, der sich zusammen mit Hofstaat, Musikanten und Frauen an einem Ritterturnier ergötzt, bei dem es hart zugeht (V10). Doch unser Glossator hat das Turnierbild anders verstanden. Den Kampf zwischen den Turnierparteien interpretiert er als Kampf von Rittern um das Papsttum: „These are fighting for the Papacy. The Papacy shall pass.” Und der Schreiber feuert die Kämpfer an: „Fight on, good Sirs, fight, and break the Papacy.” Den Kampf gegen den Papst verbindet der deutsche Glossator zusätzlich mit einem nationalistisch gefärbten Affekt gegen die geistlichen Herrscher in Rom. Am Rand wiederholte er in kräftiger Schrift, was der Verfasser des gedruckten Textes unter Berufung auf eine Glosse zum Dekret Gratians geschrieben hatte: „This is true for fools: Ruling sternly over the German fools. Der Papst-Antichrist, der sich anbeten lässt und für Geld käuflich ist (Notizen Nr. 7 und 8), muss nach dem Passional (XIII 26) in der Hölle landen, was der Glossator ironisch bekräftigt: „The Pope learns to fly to the devil by God’s command.” (Nr. 9).

Auffallend ist die obszöne Sprache in den zwei Notizen (Nr. 1 und 2) zur Krönung des Papstes (Bild II 4). Den Bischöfen, die die Krönung vollziehen, ruft der Glossator zu: “Place the crown on the Pope’s head, then cut off his testicles.” Einen weiteren Bischof und zwei Mönche, die der Krönungsfeier zuschauen, fordert der Glossator auf: „Bishop and monks, look up into his [the Pope’s] backside.” Dieser Stil entspricht der „fäkal-erotischen”21 Polemik, die Luther in seiner Schrift Wider das Papsttum zu Rom vom Teufel gestiftet (1545), veröffentlichte. Diese Beobachtung liefert einen möglichen Hinweis, dass unser Glossator seine Notizen vielleicht erst in den dreißiger oder vierziger Jahren des 16. Jahrhunderts in den Druck eingetragen haben könnte, als die Verhärtung der konfessionellen Fronten auch eine Verrohung der religiösen Polemik mit sich brachte. Ein sicherer Terminus post quem für die Niederschrift der Notizen unseres Glossators ist mit dem Erscheinen von Luthers Übersetzung des Neuen Testaments im September 1522 gegeben. Denn der Glossator ist in seinem Zitat aus Mt 11, 5 (Notiz Nr. 3) von Luthers Übersetzung abhängig. ## to be continued ##

  1. „Antithese des Lebens Christi und des Papstes in Bildern”. 

  2. Im Druck steht nur das Kapitel ohne Nennung des Johannesevangeliums (Druckfehler in den Wittenberger und Erfurter Drucken). 

  3. Im Druck ist nur das Incipit des gemeinten capitulums angegeben (Druckfehler). 

  4. Im Text fehlt die Angabe der Causa. 

  5. In Jes 21 findet sich keine zu Bild oder Text passende Aussage. Vermutlich liegt ein Druckfehler vor. 

  6. WA.B 2, nr. 385, p. 283, 24-25. 

  7. VD16 L 5589. Benzing/Claus Nr. 1024. Exemplar der ÖNB Wien: 31.W.71. Besitzvermerk auf Titelblatt: Georg[ius …] possidet. Preisververmerk auf fol. C5v: cost k[reuzer] 6. Holzschnitte koloriert. URL: http://data.onb.ac.at/ABO/%2BZ168788702

  8. VD16 L 5585. Benzing/Claus Nr. 2015. Exemplar der HAB Wolfenbüttel: A: 116.5 theol. (18). Besitzvermerk auf dem vorderen Spiegel des Sammelbandes: Ludeke Remberdes). Auf dem Titelblatt des Passional die Hausmarke des Braunschweiger Fernhändlers Ludeke Remmerdes. Über ihn s. Ulrich Bubenheimer: Thomas Müntzer. Herkunft und Bildung, Leiden 1989, p. 114. 

  9. Antithesis figurata, fol. C2v. 

  10. Act 3, 6. 

  11. Passional (Wittenberg, VD16 L 5585), fol. C2v. 

  12. Zwar wird das lateinische Wort Patrimonium beibehalten, jedoch zugleich mit erbgu(o)t übersetzt. 

  13. Passional Christi vnd Antichristi. [Straßburg: Johann Knobloch d. Ä., 1521], fol. C2v. VD16 L 5582. Benzing/Claus Nr. 1019. Exemplar der BSB München: Res/4 H.eccl. 870,9. URL: http://daten.digitale-sammlungen.de/bsb00088259/image_22

  14. Vgl. Wolfgang Braunfels; Michael Nitz: „Leben Jesu”, in: Lexikon der christlichen Ikonographie, hrsg. von Engelbert Kirschbaum, Bd. 3, Freiburg im Breisgau 1971, col. 39‑85, besonders col. 68‑79. 

  15. Siehe oben bei Anm. 6. 

  16. Passional Christi vnnd Antichristi. [Erfurt: Matthes Maler, 1521]. Pitts Theology Library, Kessler Collection: Luth WW. VD16 L

    1. Benzing/Claus Nr. 1022. Auch die drei Erfurter Nachdrucke des Passional (VD 16 L 5579-5581. Benzing/ Nr. 1020-1022) nennen Drucker, Ort und Erscheinungsjahr nicht. Das in den Bibliographien angegebene Erscheinungsjahr 1521 ist hypothetisch und gibt das frühest mögliche Erscheinungsjahr an. Die Titeleinfassung unseres Druckes ist von dem Monogrammisten FB signiert und mit 1521 datiert. Daher ist das Erscheinen des Druckes in den Jahren 1521 oder 1522 naheliegend. Die Titeleinfassung bei Johannes Luther: Die Titeleinfassungen der Reformationszeit. Mit Verbesserungen und Ergänzungen von Josef Benzing, Helmut Claus und Martin von Hase, Reprint Hildesheim 1973, Nr. 67a. Zu Maler s. Christoph Reske: Die Buchdrucker des 16. und 17. Jahrhunderts im deutschen Sprachgebiet, Wiesbaden, 2. Aufl. 2015, p. 218.

  17. Ich benenne die Tintenfarben nach ihrem heutigen Aussehen, da die Farben sich im Lauf der Jahrhunderte verändert haben können. 

  18. Dabei setzte ich hypothetisch voraus, dass die Notizen und die Kolorierungselemente von derselben Person stammen, was sich allerdings nicht beweisen lässt. 

  19. In Spalte 1 gebe ich die Fundstellen der Notizen zuerst nach meiner Zählung der Antithesen und Bilder in Tabelle 1 an, anschließend nenne ich das betreffende Blatt im Druck. Die neun Notizen habe ich in eckiger Klammer durchgezählt. 

  20. Translation by Dr. Armin Siedlecki, Pitts Theology Library, Atlanta. 

  21. Alfred Köhler: Von der Reformation zum Westfälischen Frieden, München 2011, p. 164.